जब भी परीक्षा के तनाव के बारे में चर्चा होती है, तो एक साथ कई विचार तेज आंधी की तरह जेहन में गुजरते चले जाते हैं। एक विचित्र-सा डर, भ्रम, परेशानी, अफरातफरी, दुविधा, उदासी, चिड़चिड़ापन और न जाने कितनी मानसिक और भावनात्मक अवस्थाओं को अपने में समेटे हुए परीक्षा के तनाव विद्यार्थियों के जीवन के लिए किसी दुःस्वप्न से कम डरावने नहीं होते। दुनियाभर के मनोविश्लेषक और शिक्षाविद् परीक्षा के तनाव के समाधान के लिए कई प्रकार की अनुशंसाएं करते आ रहे हैं। कोई अपने अनुभव के आधार पर परीक्षा के तनाव के शमन के लिए उपाय बताता है, तो कोई अपने किताबी ज्ञान के आधार पर। लेकिन यहां पर आत्मचिंतन का एक प्रश्न यह उठ खड़ा होता है कि आखिर एक छात्र परीक्षा के तनाव का शिकार क्यों होता है? आखिर कौन-सी परिस्थितियां हैं, जो किसी छात्र के मानसिक उद्वेलन के लिए जिम्मेदार होती हैं?
आर्थिक सुधारों के उत्तर संक्रमण काल में जब पूरी दुनिया लिब्रलाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन के अभूतपूर्व परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, तो इस सच को झुठलाना आसान नहीं होगा कि इसके कारण मानव के सोचने के ढंग और जीवन-शैली में अप्रत्याशित तब्दीलियां आई हैं। तिस पर जीवन में सूचना तकनीक की क्रांति के दखल ने तो आग में घी डालने सरीखा काम किया है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के विभिन्न उपादानों के रूप में फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर के तिलिस्मों से जीवन के संस्कार, मानवीय मूल्य और नैतिक मर्यादाएं प्रभावित हो रही हैं। इन चाहे-अनचाहे परिवर्तनों के कारण कुल मिलाकर हर व्यक्ति के जीवन में रंगीनियां आई हैं और अंततः हम अपने गंतव्य की राह से भटक गए हैं। इतना ही नहीं, उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर रही सोशल नेटवर्किंग साइट्स की तिलिस्मी दुनिया से छात्र-जीवन भी महफूज नहीं रहा और छात्रों के मन में अजीबो-गरीब भटकाव आया है। कुदरती जिस्मानी परिवर्तन के साथ मन की दशा बुरी तरह से प्रदूषित हुई है। इस सत्य से कदाचित ही कोई इंकार कर पाए कि बदलते समय की अनिवार्यता के साथ हाल के दशकों में विद्यार्थियों के स्कूल बैग्स का वजन बढ़ा है। कोर्स और कक्षाओं के पाठ्यक्रम जटिल हुए हैं और इसने विद्यार्थियों का मानसिक सुकून छीना है। परिणामस्वरूप बच्चों को इन समस्याओं से मुक्त करने के लिए टेक्स्ट बुक्स की संख्या कम करने और पाठ्यक्रम को घटाने की दलीलों से शिक्षा का बाजार गर्म है। सवाल है कि क्या महज स्कूल बैग्स का भार कम कर देने या फिर पाठ्यक्रम का स्टैण्डर्ड निम्न कर देने से छात्रों को परीक्षा के तनाव से महफूज रखा जा सकेगा?
छात्र जीवन में स्वाध्याय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे एक छात्र कठिन मेहनत के बल पर खुद में अन्तर्निहित कमियों की भरपाई करता है, पर पिछले दो-तीन दशकों में स्वाध्याय में कमी आई है। छात्रों द्वारा वाट्सएप पर अपने दोस्तों से चैटिंग करने और यू-ट्यूब पर वीडियो देखने में जिस बहुमूल्य समय की बर्बादी की जाती है, आज उस पर गहनता से चिंतन की दरकार है। ऐसा माना जाता है कि यदि आप किसी कार्य के संपादन की योजना बनाने में असफल रहते हैं, तो आप असफल होने की योजना बना रहे होते हैं। कार्य की विशालता को ध्यान में रखते हुए योजनाबद्ध तरीके से कामयाबी पाने की व्यूहरचना के अभाव में मन में चिंता फिर निराशा और अंततः तनाव उत्पन्न होता है। अनियोजित और अव्यवस्थित जीवन शैली के कारण मन-भटकाव का जो सिलसिला शुरू होता है, वह अंत में निराशा का कारण बन जाता है। परीक्षा के बारे में जब छात्रों की नींद खुलती है, तब तक पीछे जाकर चीजों को फिर से सहेजने के लिए काफी देर हो चुकी होती है। तिस पर पेरेंट्स के द्वारा अपने बच्चों से जमीनी सच्चाई से परे उम्मीद रखने से भी मन एकाएक व्याकुल हो उठता है, जिसकी परिणति हताशा और अवसाद में होती है। लिहाजा परीक्षा तनाव को अपने जीवन से दूर रखने के लिए छात्रों की जीवन शैली में अहम परिवर्तन की दरकार है। जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित करके उसका शिद्दत से पीछा करने की जरूरत है। 'करत-करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान' के आधार पर निरंतर अध्ययन करने और नया सीखने की आदत का विकास करना होगा। मोबाइल और टेलीविजन के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए मन पर कठोर नियंत्रण अति आवश्यक है। तेजी से गुजरते समय और छात्र-जीवन की अहमियत को पहचानकर मन को वश में करते हुए यदि सेल्फ-स्टडी के माध्यम से अपने और पेरेंट्स के सपनों को साकार करने की पूरी सच्चाई और लगन से कोशिश की जाए, तो परीक्षा तनाव नहीं, बल्कि सम्पूर्ण जीवन यात्रा का एक प्रतीक्षित और सुखद पड़ाव बन जाती है।